विकास के नाम पर देश की ज़मीन, जल, खनिज एवं अन्य संसाधनो की खुली बिक्री नहीं चलेगी
किसान, मछुआरे, आदिवासियों की जबरन बेदखली नहीं चलेगी
लाभ के लालच में ढीली पर्यावरण व्यवस्था नहीं चलेगी
यह भारत की विडंबना है की आज़ादी के बाद भी जनता द्वारा चुने गये लोकतांत्रिक सरकारों का छुपा मुद्दा रहा है देश की ज़मीन, जल, खनिज एवं अन्य संसाधानो की खुली बिक्री। इस प्रक्रिया मे अग्रणी है हाल ही में चुनी गयी केंद्रीय सरकार। जहाँ एक तरफ किसानों की ज़मीन को जबरन देशी-विदेशी पूंजीपति कंपनियो के हवाले किया जा रहा है, वहीं सरकार विश्व बैंक एवं अन्य अंतर-राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानो से हज़ारों करोड़ों का क़र्ज़ ले कर देश के अर्थव्यवस्था को अंधेरे गर्त में धकेल रही है।
इन सभी जन-विरोधी नीतियों एवं परियोजनाओ का प्रत्यक्ष रूप दिखता है सरकार की ‘कॉरिडोर’ या ‘गलियारा’ परियोजना के रूप में। पूरे देश मे ऐसे कई गलियारों को प्रस्तावित किया गया है जिनमे पाँच अग्रणी है, दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा (डी. एम. आई. सी), अमृतसर कोलकाता औद्योगिक गलियारा (ए. के. आइ. सी), बेंगलुरु – मुंबई इकोनोमिक गलियारा (बी. एम. ई. सी.), चेन्नई – बेंगलुरु औद्योगिक गलियारा (सी. बी. आई. सी.), और विशाखापत्तनम – चेन्नई औद्योगिक गलियारा (वी. सी. आई. सी.)।
इन गलियारो मे समाएगा निजी मालवाहक रेल व्यवस्था, विद्युत उत्पादन केंद्र, स्मार्ट शहर, नदी-इंटर लिंकिंग और कई बड़ी परियोजनाए जो देश की कृषि व्यवस्था, पर्यावरण और लोकतंत्र को पूरी तरह निगल जाएगा। डी. एम. आई. सी. पहले ही चरण में 90,000 हेक्टेयर जमीन को अपनी चपेट में लेगा। ए. के. आइ. सी. के पहले चरण में सिर्फ़ उत्तर प्रदेश ही 30,000 हेक्टेयर का प्लान सौंप चुका है। सिर्फ़ पूर्वी मालवाहक गलियारे के लिए विश्व बॅंक से 14000 करोड़ का लोन लिया गया है और पश्चिम मालवाहक गलियारे के लिए 40,000 करोड़ जापान से लिया गया है। डी. एम. आई. सी. का कुल खर्चा होगा 90,000 करोड़।
जगह – जगह ज़मीन अधिग्रहण की नोटिस जारी कर दी गयी है। कई जगहो पर जन सुनवाई या सार्वजनिक सुनवाई हो चुकी है। इनसे जुड़े किसी भी प्रतिवाद को किनारा करते हुए सरकार अपनी बात मनवाने में व्यस्त है। अन्य कई जगहो पर काम शुरू हो चुका है।
भारत में औद्योगिक गलियारों का फैला जाल का मानचित्र [सभी गलियारों को मानचित्र पर दर्शाने के लिए अभी इस पर कार्य किया जा रहा है]